ओह फिर आ गयी बड़ी मुश्किल;
कि बहुत कशमकश-ए-ज़ज्बात में है नाजुक द़िल।
मुश्किल हुआ है जीना तेरे जहाँ में,क्या ख़ता हुई मुझसे,
साफगोई-ए-जुब़ा ही ग़र गुऩाह है,तो बार-बार होगा मुझसे।
तेरी इब़ादत से हास़िल की है ये तालीम इक 7 की मानिंद,
ग़र ये गुऩाह है तो मर्जी तेरी दे सजा या सर क़लम करदे हसन की मानिंद।
ग़र प़ाक लफ्ज़ हैं मेरे द़िल के ब़यानात -ए-अन्दाज़ में तो कुब़ूल फ़रमा मेरी फ़रमाइश को,
नहीं देख सकता द़िल तेरे ही किसी बन्दे की परेशानी जो तङप रहा है इक रोशनी की रिहाइश को ।
ख़ाक हो जाये सारी शैतानियत,ला दे दे मेरे द़िल को तेरा इक कतरा-ए-आग,
या फिर ये क़रम अता कर इस मुरीद पे कि दे दे अल्लादीन का च़िराग।
मैं तो मसरूफ़ हूँ तेरे ही जहान के तेरे बन्दों की ख़िदमत में,
क़ुबूल फ़रमा आसमान से ही सही,मेरा हर क़दम जो है,है तेरी इब़ादत में।
कलम-ए-नज्म—-अरूणा शर्मा
तारीख-22.09.2018. .वक्त-12.27am
Images are taken from Google.
Beautiful composition of words
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Kitni khubsurati se aapne us uparwaale se duaa ki hai…..shandaar kavita……ek ek shabd dil se nikal dil ko chhute huye.
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हाँ मैं बहुत तनाव से गुजर रही हूं-आपकी शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद।
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A lot of thanks.
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Dukh sukh jivan ka ang hai…..dharya hi wo hathiyaar hai jiske sahare ham pratyek dukh ko khatm kar sakte hain……..
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Ji haan.aapne sahi farmaaya.thanks dear!!
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