
जब भी फुरसत के लम्हों में पढ़ती हूँ कोई किताब,
लिये ताजा-तरीन मैदा और दिल में हसीं ख्वाब,
उफ्फ,मेरी तौबा!!ये क्या घुस गया इन अदीब़ाओं के दिल में
कौन सी कलम मिली इन्हें संग पुरअशरार द़वातोंके
जब पढ़ी कुर्रतुल-एन-हैदर
मेरी जुल्फों में जूंओं की रंगरेलियाँ शुरू हो गई
जब इश्मत च़ुगताई के लफ्ज थामे
हर शै’ जहाँ की दाश्ता बन गई
क्या वो सब उनके हकीकतन तस्सवुरात थे
या नक़ाब में छिपी धुन्धीयाई निगाहें
अजी ज़नाब!! इनसे बेहतर था वो दर दर का मारा
मेरा ही एक अज़ीज साहब-सआदत हसन मन्टो बेचारा
लाख कहे कोई उसे बेचारा पर एटम बम से कम ना था
आखिरी साँस तक जो काम अद़ब का किया,बला का था
जाते जाते भी हर ऩकाब उठा गया हर नकली चेहरे से
हिन्दू या मुसलमान,सभी को नंगा कर गया दुनिया के हम्माम में
साहिर सी कतरनी थी उसकी जुबां,लाख लोग छिपाये अपने को सौ परदों में
वो नंगे जिस्म,वहशी आँखे श़राफत का नक़ाब डाले अब भी रक्सनुमाँ हैं
और मंटो की रूहानी निगाहें इक सूफी सी हर सूं चस्पां हैं ।
Copyright © 2022 Aruna Sharma
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