मैं अपने आप में गुम हूँ,
आवाज़ ना दे कोई…
ये खामोशी भी द़िल की अदा है मेरी,
ना फि़दा हो कोई…
उलझे धागे ज़िन्दगी के सुलझा के उलझा रही हूँ,
उलझे मुझसे ना कोई…..
कौन तीसमारखाँ आयेगा यहाँ,
चँगेज खाँ की कब्र खोद रही हूँ…..
सिकन्दर भी नहीं बनना मुझे कि,
खाली हाथ हैं, मल रही हूँ……
अज़ब सा स़मा तारी है मुझपे,
कि स़हर को श़ब औ’ श़ब को स़हर कर रही हूँ….
ज़हान की जहांगीर नहीं मैं,
ऩूरजहाँ सी नहीं बन रहीं हूँ…..
मेरी ख़ल्वतें तन्हा खुद ख़ल्वतों पे म़ायूस,
उन्हीं ख़ल्वतो की क़ुरबत कर रहीं हूँ…
इक मुहब्बत का खज़ाना है,
ना ज़ाने किस की स़दाओं से भर रही हूँ…..
तन्हा अपनी तन्हाई से बातें करते हुए,
ग़ुमां होता है कि रब़ की इब़ादत कर रहीं हूँ….
म़ाशाअल्लाह क्या कय़ामत सी ज़िंदगी मेरी,
स़र्द हव़ाओं में श़ोलों सी जल रहीं हूँ…..
Copyright © 2022 Aruna Sharma
All rights reserved
अजब महफ़िल है सब इक दूसरे पर हँस रहे हैंअजब तन्हाई है ख़ल्वत की ख़ल्वत रो रही है-अज़्म बहज़ा
You must be logged in to post a comment.