जब मंदिरों की घंटियाँ बजती हैं,
वुज़ूद के हर रग़ में उतर जाती है मदह़ोश होके।
फ़ज्र के अज़ान की आव़ाज जब ख़लाओं में गूँजती है,
मेरे ऱूह की तहों मे त़ारी हो जाता है पुरसुकून नशा होके।
गुरुद्वारे के क़गूरों से नानक सी शक्ल ज़ेहन में उतर जाती है गुरूवाणी की आव़ाज बन के।
ग़िरजे के घड़ियाल बजते है तब इक रूहानी ज़ीना सा खुल जाता है ख़ुदा का द़र बन के।
कितना खूब़सूरत होता है वो समाँ मेरे म़ुल्क की मिट्टी में घुल के।
देखा है नज़ारा वो रूहानी मिलन का हर ईद ,होली,लंगर या सांताकलाॅज के नये दिन पे।
रहने दे,ऐ निज़ाम! मेरे म़ुल्क के आस्माँ को रंगा हुआ हज़ार रंगों में,
कि सदियों से ये अमर इन्द्रधनुष श़ान है म़ुल्क के माथे पे सारे जहाँ में।
सभी चीज़ों को पीला रँग ना दे,क्योंकि ये कोशिशें इक शै’ बन तेरा चेहरा ही ना पीला कर दे।
तेरी च़िलमन तो उतर चुकी ,कहीं दुनिया के हम़्माम में बेलब़ादा ना कर दे।
तू ऩिज़ाम है रिआय़ा की ब़दौलत कि भिखारी बन जायेगा बिन दौलत के।
कर कुछ कोश़िशें ऱिआय़ा की खातिर क्योंकि नहीं मिली है तुझे कोई दुआ बचने के लिये।
ग़र छीन लिये घर तूने गरीबों के,तो आस्माँ भी म़हरूम रखेगा तुझे अपनी प़नाह देने के लिये।
ओह,क्यों है इतना लाल रँग बिखरा हुआ हर तरफ़ कि
कि रो रही हर रूह अपने से ज़ुदा ज़िस्म से लिपट,तेरी हैव़ानियत का अंजाम है।
पर याद रख तू इक मज़हब पे फ़िदा है और सब मज़हब तुझसे ले रहे इंतकाम हैं।
अब आगे क्या फ़रमायें हम,जब सुनने वाला ब़हरा है ,तेरी दाढ़ी में दिखे सबको तिनका है।
आईना क्या देखे अँधा पर ध्यान रख कि सैल़ाब आयेगा तो इस तिनके का सहारा भी नहीं तेरे पास है।
Written by Aruna Sharma.
28.2.2020.
10.00AM.
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