

एक तरफ सोने चाँदी की चंद मीनारें,
दूसरी तरफ गुरब़त के चीथड़ों के हर ओर साये।
इतना फ़ासला,ऐ खुदा!! तूने क्योंकर रखा,
कि गुरब़तों के भी नहीं हैं कोई सरमाये।
रक़ाबत भी दी औ’ रफ़ाकत भी भरपूर,
बस श़राफत के दामन में भर दिये शोलों के रिसालें।
बंद कमरों में रोती है बेचारी समीना कि
सभी मुहाफ़िज बने हैं अस्म़त के लिये दिल काले।
क्या तू फ़कत दौलत का ख़ुदा है या मौला,
कि तेरी तराजू में अश़्क भी तुलते हैं बद्दुआ वाले।
रो रो के कहती है सभी समीनाऐं-
इंसाफ कर या’ ख़ुदा कि
फिर किसकी बन्दगी में झुकेंगे सिर सारे।
कि फिर क्या कीमत होगी हर दुआ,बद्दुआ की,
क्या हर सम्त मर्ज-ए-द़र्द पीते रहेंगे आहों के प्यालें।
मुझे नहीं चाहिये दौलत की ख़नक में नाचती रक़्कासाऐं,
देना है तो दो ग़ज लिबास का टुकड़ा ही दे दे,
कि ढाँप सकूं सभी ज़ख्मी ज़िस्मों की कराहें।।।
‘गर मेरी आव़ाज में तू म़हसूस करे क़ूव्वत,
तो बन खुर्शीद उन कँपकंपाते स़र्द ब़दनात के वास्ते।
और मेरा सर झुका रहे तेरी चौखट पे हमेशा,
स़जदें में ता-उम्र तेरी आफ़ताबी ज़लाल के आगे।




Copyright@aruna3

Amazing ❤❤
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A lot of thanks,my dear Angel❤
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It is not for you,my dear!!
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