कहें जाके किस से अपना म़र्ज़ इस तक़रार -ए-मैं ही मैं का,
इक ऩासूर सा टीसता है घाव बन द़िल का।
क़ाश कि कोई द़वा करे या दुआ
आसम़ान में ढूंढ़ती है निग़ाह इक निशाँ च़ारागर का।
काश़ कोई दे दे मरह़म मेरे जख़्म-ए-प्यार के च़िनार का।
इस म़र्ज ने ना जाने ब़रबाद किये कितने दरीच़ा-ए-ग़ुलनार का।
अरे मत करो ब़र्बाद अपना व़क्त,रख ले सारा ख़जाना तू सारा मैं का।
समय बहुत ख़राब है ,साहिब,और क्या कहें रव़ायत-ए-जहाँ का।
इंसानों की बस्ती में ज़ानवर भी रहते हैं-मिस़ाल लो जरा बकरे का।
सारा दिन मैं मैं करता है घर बाहर होके म़गरूर अपनी शख़्सियत का।
बकरे की अम़्मा कब तक ख़ैर मनायेगी,कब तक जतन करेगी उसे बचाने का।
हल़ाक होने पे उसकी चमड़ी जब ढ़ोल पे मढ़ेगी,तब बजाते व़क्त तू ही तू की आव़ाज निकलेगी बाक़ायदा।
फिर मैं मैं ना रहेगा फ़ना होने के बाद कि हर कोई मुन्तजिर ही हैं उसी मंजिल की राह का।
खड़े हैं सब जिन्दगी के म़ुसाफिरखाने में इक क़तार में जैसे ऩमाज की अज़ान सुन खड़ा हो कोई शख़्स व़ुजू के लिये ज़ाहिद सा।
यक ब़ा यक रेलगाड़ी की सीटी सुन नव़ाबी अंदाज में बैठे हैं चाहे मेहमाँ हो चँद घड़ी का।
अगले मुक़ाम पे ही आयेगी अक़्ल कि जमीं पे ना था कोई फ़र्क नव़ाब और फ़कीर सा।
म़ेहमानव़ाजी-ए -नूरू-ए -ख़ुदा का हक़दार होगा मोम़िन या मैम़ूना बन आसमाँ के सरमाये सा।
Written by Aruna Sharma.28.04.2020
10.40PM.
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खूबसूरत रचना।👌👌
मेरा कमेंट्स शायद उस समय नही गया होगा।
किया जरूर था।
मैं-मैं का जहर,क्या अमृत निगल जाएगा,
या वह दिन एक दिन आएगा जब,
मैं ही मैं का दुश्मन बन खुद ही बिखर जाएगा?
जैसे एको अहं, द्वितीयो नास्ति,कहने वाला
रावण बिखर गया,
दुर्योधन बिखर गया,
हिरणकस्यपू,हिरण्याक्ष न जाने कितने
अहं इस दुनियाँ से मिट गया,
या मिट जाएगा अमृत कलश प्रेम का,
जिसे परम् पिता परमेश्वर ने
हमें दे कर भेजा था?
ये गीता,कुरान,बाईबल पहले आया था,
या इंसान आया था,
प्रश्न हजार,समाधान नही मिलता,
धार्मिक लोग बहुत मिल जाते हैं,
घण्ट बजाते और अजान देते भी,
मगर इंसान नही मिलता।
जिसे देखो अपने अपने धर्म की बातें करता है,
हम भी और आप भी,
मगर हमारा धर्म प्रेम का कहीं खो गया,
इन धर्मों में।
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वाकई🌷बेहद खूबसूरत जव़ब चे लिये शुक्रिया।
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