
इस द़िल की चैन की ख़ातिर जो नग़मा गुनगुनाता रहा
अक्सर पाने को क़रार,
वही नग़मा मुझे समझाता है अब क्यों सजाये रखा है मुझे अपने लब़ पर होके बेक़रार।
ओह,बहुत थक चुका है दिल देख के दुनिया की व़हशत ब़ेशुमार।
मैंने तो फ़कत सीखा और सिखाया हर गैर अपने को सब़क-ए-प्यार।
जाने कहाँ से हर कदम पे उठ रहा नफ़रतों का ग़ुबार।
साँस के हर सफ़हों पे धीरे धीरे छा रही है धुन्ध की कतार।
अभी तो मेरी बगिया के फूल बड़े नाज़ुक हैं,मेरे द़िलदार।
या तो दे दे ताज़ी हवा और रिमझिम सी बौछार।
या कि दे इज़ाजत जाने की दूर कहीं तन्हा से दय़ार,
जो अब भी बुलाता है बन के पुरनम़ सुकूने ब़हार।
एक हिमालय में सुनी थी ग़ुमनाम सी गुफ़ा की पुकार।
वहीं से अब तलक गूँज रहे है जैसे दुआओं के अस़रार।
बस अब और नहीं करना है मुझे डूबने का इन्तजार।
जहाँ हर मोड़-ए-जिन्दगी में है हर रिश्ता सड़े से तालाब का खरपतवार।
मुझे नफ़रत है हर नफ़रत से,
मुझे व़हशत है हर व़हशत से,
मुझे ज़िल्लत है हर ज़लालत से,
हाँ पर मुहब़्बत है हर मुहब़्बत से,
बेशक रहूँ चाहे हज़ार गुरब़त में।
सिर झुका रखा है यूँ सज़दा-ए-म़जार में।
मेरी क्या औकात फिर भी उम्मीद लिये हूँ ख़ुदा हो रहमत-ए- म़यार मे।

Wah ..
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WOW!!!
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Beautifully written!!
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So much thanks,dear🌷
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Thanks dear!!
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Thanks,dear!!
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aapki Hindi bahut achhi hai, mashallah.
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Thanks,dear Atul🌷
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