ये जो मुहब्ब़त है……

ये जो मुहब्ब़त है

खेल नहीं दिल बहलाने का,

तमाशा नहीं दिखाने का।

फ़कत प्यार है,जो छिपा है दिल की गहराइयों में,

ज्यों सितारें चमकते हैं रात की तारिकीयों में।

नहीं कोई शिकायत कि मिलना ना हुआ,

कुद़रत ना थी मेहरब़ान,जो होना था हुआ।

मन के मन्दिर में जल रही है दिये की तरह,

आज तलक एक पूजा सी दोनों तरफ।

वह भी नहीं मुझसे बदगुमाँ,

अजनबी ही सही, है मेरा रहनुमाँ।

ये श़य है ही ऐसी च़ीज मेरे ख़ुदा की अम़ानत,

नहीं कर सकेगी कुद़रत भी यहाँ शरारत।

हर तूफाँ से जो गुज़र गया बैखौफ़,

खुदा का क़रिश्मा है ,साथ लिये था उसकी इब़ादत।

म़हबूब मेरे,तू पास नहीं पर पास का अहस़ास सा लगता है,

फूलों से लिखी प्यार की द़ीवार-ए-द़िल पे छपी इब़ारत सा दिखता है।

तू लौ दिये की,आज भी रौशन है मेरे द़िल का सूना आंगन,

जैसे तू बँसी की हो धुन बजती कहीं,मैं राधा सी नाच रही लहराके आँचल।

हर युग में तेरी धुन बाँसुरी सी होगी और हर बार इक राधा का इन्तजार होगा,

जिस्म़ानी नहीं,हाँ पाक शफ्फाक सा वो रूह़ानी प्यार होगा।

हर सूं बरस रहा तेरा प्यार इन्सानियत पे,मैं भी चल रही तेरे कदमों के निशाँ पे,

इस से ब़ेहतर प्यार के मन्दिर पे चढाने का क्या उपहार होगा।

Written by Aruna Sharma.

30.06.2019. 1.17 at midnight

All copyrights are reserved by Aruna Sharma.

All images are taken from Google.

3 thoughts on “ये जो मुहब्ब़त है……

  1. वाह। बहुत ही खूबसूरत कविता।।।

    म़हबूब मेरे,तू पास नहीं पर पास का अहस़ास सा लगता है,

    फूलों से लिखी प्यार की द़ीवार-ए-द़िल पे छपी इब़ारत सा दिखता है।

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