Happy Dussehra!!!!!!!!

We celebrate this festival as the truth’s victory on evils.

Send by aruna sharma.

MAY GOD BLESS ALL HUMANS AND FINISH ALL EVILS IN THIS WORLD.🕉🕉🕉🕉🕉🕇🕇🕇🕇🕇🕀🕀🕀🕀🕁🕁🕁🕁🕂🕂🕂🕂🕂✡✡✡✡🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

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मैं…….

मैं फूलों की कालीनों पे चली हूँ,मगर;

काँटों की रहगुज़र से भी गुजरी हूँ;मगर;

ये’ मगर ‘अगर ‘मगर ‘ही रहे ……ग़र;

तम़ाम जिन्दगी में रहेगा द़िलचस्प अस़र।

मेरे आस्माँ में चाँद सितारें पहले भी थें;

आज भी हैं जज्ब़ातों के आँचल में टँके।

वो पुरब़हार,च़िनार,शिक़ारें,सरग़ोशी-ए-सब़ा हैं मेहरबाँ,

नहीं होते लहुलूहान अक्स मेंरे जो हैं सर से प़ा इनमें रँगे।

होगा कोई बादश़ाह अपने घर में होगा-मेरी फ़कीरी से जलता क्यों है,

मेरी द़ौलत मेरे द़िल में है-उसे मतलब क्या,फिर मरता क्यों है।

ये’ मैं’ कह रहीं हूँ-क्या समझे ज़नाब!!

इसी ‘मैं’ में छिपा है सबके ‘मैं’ का आदाब़।

सरे राह चल रहे सब तन्हा से जैसे अक्स-ए-गुब़ार,

इस ‘मैं ‘से उस ‘मैं’ तक का सफ़र,क्या कुछ है जवाब़।

कोई क़श्ती है कोई साह़िल है,कोई राह़ी है तो कोई म़राहिल,

हाँ जी म़सरूफियतें भी बहुत उनके पास,हम तो पागल हैं,वो हैं नापरस्ती में ग़ाफिल।

हाँ, याद आया कि इक काँटा तो गड़ा था द़िल में,

पर कमबख्त वो स़ुर्ख गुलाब़ का था।

वह तो ना निकलेगा,सहेज रखा है इब़ादत की तरह,

क्योंकि उसे राब्ता फ़कत रब़ का था।

कलम-ए-नज़्म-अरूणा शर्मा

तारीख-17.10.2018

वक्त-6.20 शाम(pm)

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राब्ता=संबध/भरोसा